अमिताभ पाण्डेय
हमारे देष में आज भी 70% से अधिक जनसंख्या स्वास्थय, षिक्षा, रोजगार से जुडी बेहतर सुविधाओं को पाने के लिए संघर्ष कर रही है। देष में गुणवत्ता युक्त सेवाओं को पाना केवल अमीरों अथवा समाज के प्रभावषाली वर्ग के लिए ही संभव हो पा रहा है। देष के गांव हो षहर सभी जगह एक बडी आबादी को न तो बेहतर षिक्षा मिल पा रही है, न ही उनके उपचार के इंतजाम बेहतर हैं। यह जो बडी आबादी है इसमें अधिकाषं संख्या अषिक्षित अथवा अल्प षिक्षित लोगों की है जो कि वंचित ,कमजोर वर्ग से आते हैं। इस वर्ग में आनेवाले महिला, पुरूष, बच्चे  अपनी अपनी क्षमता के अनुसार मेहनत मजदूरी करके अपना और अपने परिवारजनों जीवन किसी तरह चला रहे हेंै। गरीब, कमजोर वर्ग के लोगों का जीवन बेहतर बनाने के लिए ष्षासन की ओर से जो योजनाएं प्रारंभ की जाती हैं उनमें से ज्यादातर भ्रष्टाचार में उलझकर रह जाती हेै। ऐसी योजनाओं का फायदा आम आदमी, पिछडे,कमजोर, गरीब वर्गो तक पूरी तरह नहीं पहॅुच पाता। ऐसे वर्गो का जीवनस्तर बेहतर बनाने के लिए सरकार के अतिरिक्त अनेक गैरसरकारी संगठन भी हमारे देष में काम रहे है। इन गैरसरकारी - समाजसेवी संगठनों से जुडे लोग पिछडे,कमजोर वर्गो की मदद के लिए अनेक कार्यक्रमों का संचालन कर रहे हैं जिनके अच्छे परिणाम मिले हैं।

ऐसे सरकारी, गैरसरकारी संगठन जो कि समाज में अच्छा काम कर रहे हैं उनका प्रचार प्रसार मीडिया इस विष्वास से करता है कि इससे दूसरे लोगों को प्रेरणा मिलेगी। यह सही है कि यदि समाज में अलग अलग वर्गो के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और मीडिया के लोग यदि बेहतर समन्वय के साथ मिलकर  काम करें तो  अनेक सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। अनेक ऐसे ष्षासकीय कार्यक्रम भी हैं जिनके क्रियान्वयन में समाज के लोगों ने उत्साह दिखाया और मीडिया ने उसका प्रचार किया तो परिणाम बडे सकारात्मक मिले हैं। हमें यह स्वीकार करना होगा कि  अनेक आलोचनाओं के बाद भी मीडिया ने अपने सामाजिक दायित्व को बेहतर तरीके से निभाया है। इसमें अलग अलग क्षेत्रों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान भी काबिले तारीफ है। ये सामाजिक कार्यकर्ता मैदानी स्तर पर काम करते हुए समाज की समस्याओं को अच्छी तरह से जानते समझते हैं और इन समस्याओं के समाधान के लिए काम करते हैं।
समाज में समस्याओं के समाधान और सकारात्मक बदलाव की प्रक्रिया को आगे बढाने के लिए विषयविषेषज्ञ लगातार चर्चा करते रहते हैं। इसके माध्यम से यह प्रयास होता है कि समाज के विविध क्षेत्रों में काम करनेवाले लोग बेहतर बदलाव में अपना योगदान दें। सामाजिक सक्रियता को बढाने के उद््देष्य से पिछले दिनों एक सेमिनार का आयोजन दिल्ली में किया गया । इसमें पष्चिम बंगाल, तेलगंना, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेष, झारखंड, बिहार, मध्यप्रदेष,छत्तीसगढ, उत्तरप्रदेष,राजस्थान,असम,उडीसा आदि राज्यों के साथ ही दिल्ली के सामाजिक कार्यकर्ता एंव पत्रकार  भी षामिल हुए। नेषनल फाउन्डेषन फार इंडिया भारतीय प्रतिष्ठान,आक्सफेम द्वारा आयोजित इस सेमिनार में राज्यसभा सदस्य एंव वरिष्ठ पत्रकार हरिवषं ने कहा कि ष्षासन द्वारा समाज के विकास हेतु जो विभिन्न योजनाएं चलाई जा रही हैं उनका सोषल आडिट होना चाहिये । सामाजिक कार्यकर्ता मैदानी स्तर पर क्रियान्वित होनेवाली योजनाओं के बारे में अच्छी जानकारी रखते हैं। यदि प्रषासन के अधिकारी - कर्मचारी इन जानकारियों पर गंभीरतापूर्वक कार्यवाही करें तो इसका लाभ आम जनता को अधिक मिल सकता है। श्री हरिवषं के अनुसार सामाजिक कार्यकर्ताओं और मीडियाकर्मियों के साथ मिलकर प्रषासन ने स्वास्थ्य, षिक्षा, पर्यावरण, महिला सम्मान और सुरक्षा सहित सामाजिक सरोकार से जुडे अन्य कार्यो में प्रषंसनीय काम किया है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों को लोकषक्ति से जुडने का अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिये। इस कार्य में सामाजिक कार्यकर्ता अपने तथ्य ,प्रमाण के आधार पर सहयोग करके पत्रकारों के लेखन को ज्यादा असरदार बना सकते हेंैं। सेमिनार में नेषनल फाउन्डेषन फार इंडिया के कार्यकारी संचालक अमिताभ बेहार ने कहा कि सामाजिक समस्याओं का समाधान करने के लिए मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एकजुट होना जरूरी है। सामाजिक आंदोलन समाज के हर वर्ग की भागीदारी और एकजुटता से ही सफल होगें। श्री बेहार ने कहा कि इन दिनों हमारा समाज कठिन दौर से गुजर रहा है। सामाजिक न्याय की बात कम हो रही हेै। ऐसे समय सामाजिक बदलाव के लिए सबको मिलजुलकर बुनियादी सवाल उठाने होगें। बेहतर समाज के लिए मिलकर काम करना होगा। इस अवसर पर आक्सफेम नामक सामाजिक संस्था की कार्यकारी निदेषक निषा अग्रवाल ने कहा कि मीडिया और समाज का मिषन एक ही है। हमें  देष में बढती असमानता के विरूघ्द जोरदार आवाज उठाना होगा। हमारे देष में सामाजिक बदलाव के लिए अलग अलग राज्यों में जो काम हो रहे हैं उनकों पूरी सच्चाई और निर्भीकता के साथ आम जनता तक पहुॅचाना मीडिया के सामने बडी चुनौती है। ऐसा इसलिए है कि मीडिया में जो असहमति के स्वर हैं, वंचित कमजोर वर्ग के हक में उठने वाली आवाजें  हैं , उनको दबाया जा रहा है अथवा दबाने की कोषिष की जा रही हैं।

इस सेमिनार में वृृृध्दजनों की कल्याण संबंधी काम करने वाली संस्था हेल्पेज इंडिया के प्रमुख मेथ्यू चेरियन ने कहा कि भारत में 13 मिलीयन से अधिक सामाजिक ,स्वयंसेवी संस्थाएं हैं जिनमें से अनेक संस्थाएं बहुत बढिया काम कर रही हें। उन्होंने बताया कि देष में समाजसेवा के कार्य में लगभग 14 मिलीयन सामाजिक कार्यकर्ता विभिन्न क्षेत्रों में जुडे हेंै। बाबा आमटे,राजेन्द्र सिंह, विनायक चटर्जी, अन्ना हजारे जैसे अनेक समाजसेवियों ने लोकसेवा के काम में अपना पूरा जीवन लगा दिया। ऐसे लोग समाज के आदर्ष हैं।

 इस कार्यक्रम में चर्चित बेबसाईट स्क्रोल डाट इन के उप संपादक एंव पर्यावरण संबंधी मुद्दों के प्रमुख पत्रकार नितिन सेठी ने कहा कि पत्रकारों को विभिन्न स्त्रोत से जो सूचनाएं मिलती हेैं उनकी मौके पर जाकर जांच करना चाहिये । ऐसा करने से कई बार नये तथ्य सामने आते हैं और चैंकाने वाली जानकारियां मिलती हेैं। चेजं डाट ओ आर जी नामक बेबसाईट की प्रमुख संचालक दुर्गा नंदिनी ने कहा कि पत्रकारों को एक कहानी के विविध पक्षों पर बार बार समाचार बनाने चाहिये। एक ही कहानी के बारे में बार बार काम करते रहने से नये नये तथ्य सामने आते हैं । लगातार किसी मुद्दे पर खबर बनाने से उसका ज्यादा असर समाज और सरकार में देखने को मिलता है।

सेमिनार में अपने विचार प्रकट करते हुए सी जी नेट स्वर नामक संचार-संवाद सेवा के प्रमुख ष्षुभ्रांषु चैधरी ने कहा कि सूचनाओं के आदान-प्रदान और सही जगह तक त्वरित गति से सूचनाओं को पहुॅचाने में मोबाईल की महत्वपूर्ण भूमिका है। श्री चैधरी ने कहा कि हमारे समय में जो संचार क्रान्ति हुई है उसका उपयोग सामाजिक बदलाव के लिए किया जाना चाहिये। इसके लिए सोषल मीडिया में अधिक संभावनाएं हैं। मीडिया और समाज के बीच विष्वास बना रहे इसके लिए सबको अपनी जिम्मेदारी बेहतर तरीके से निभाना होगा। रांची से आये पत्रकार रजत गुप्त ने कहा कि वैकल्पिक मीडिया का विस्तार सामाजिक बदलाव में बडी भूमिका निभा सकता है। आक्सफेम नामक सामाजिक संस्था से जुडी रानू भोगल ने सामाजिक विकास के मुद्दों को मीडिया में अधिक स्थान दिये जाने की बात कही । वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह ने कहा कि इन दिनों ष्षासन,प्रषासन के विरूघ्द लिखना-बोलना खतरनाक होता जा रहा है। ग्रामीण भारत के बारे में जितना लिखा जा रहा है वह पर्याप्त नहीं है। भूख,गरीबी,विस्थापन जैसे मुद्दे समाज के सामने चुनौती बनकर खडे हैं। मीडिया में ष्षासन की योजनाओं को सप्रमाण गलत साबित करने वाली खबरों के लिए जगह कम होती जा रही हेै। आदिवासी योजनाओं का बजट ष्षहरों की सुविधाओं को बढाने पर खर्च किया जा रहा हेै। मीडिया में गरीबों की सबसीडी की खबरें लगातार आती है लेकिन बडे औघोगिक घरानों की सुनियोजित और लगतार लूट प्रिंट और इलेक्टिानिक मीडिया में नजर नहीं आती हेै। युवा पत्रकार नेहा दीक्षित ने कहा कि बडे अफसरों, औघोगिक घरानों और नेताओं का गठजोड कई बार बडे बडे घपले घोटालों को मीडिया में आने से रोक देता है। गांव-गरीब की खबरें अग्रेंजी अखबारों में बहुत कम आ पाती हैे। सेमिनार में आई एम फोर चेंज नामक बेबसाईट के वरिष्ठ पत्रकार विपुल मुदगल ने कहा कि बिगड चुकी प्रषासनिक-राजनीतिक व्यवस्था को अधिक से अधिक पारदर्षी बनाने की बात होना चाहिये। ऐसा करने से जो गलत हो रहा है वह जनता जान पायेगी। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार किसलय भट्टाचार्य, अखिलेष्वर पाण्डेय कम्युनिटी रेडियो से जुडे अंषु षर्मा , सामाजिक कार्यकर्ता रीना मुखर्जी , चंदोश्री, मिनी कक्कर सिंह, हिमांषी मट््टा, प्रषांत दुबे, राकेष मालवीय के साथ ही  पत्रकार  षुरैह नियाजी,रूबी सरकार,स्नेहा खरे, षालिनी अग्रवाल, नीरज सोनी,कोषलेन्द्र पाण्डेय, डी ष्याम कुमार, विकास रानी तिवारी, अनिल चैधरी, सहित अन्य प्रतिभागियों ने सामाजिक बदलाव के मीडिया ओैर समाज के बीच बेहतर समन्वय बनाये रखने पर जोर दिया।


(लेखक सामाजिक सरोकार से जुडे विषयों के स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

 

Source : अमिताभ पाण्डेय